सखि,
सुना है कि कानपुर में कथित शांति समुदाय ने भयंकर हिंसा कर दी है । हिंसा भी किस दिन और कब शुरू की गई, यह जानना बहुत ही जरूरी है ।
इस समुदाय के द्वारा सप्ताह में एक दिन अपने धार्मिक स्थल में "शांति पाठ" किया जाता है । वह दिन "शांति दिन" कहलाता है । सभी शांतिप्रिय लोगों को उस दिन "शांति पाठ" करना आवश्यक होता है । मौलवी साहब वह शांति पाठ करवाते हैं । इस शांति पाठ के लिये पत्थर, ईंट, तलवार, चाकू, रिवाल्वर, देसी कट्टे, बम, पेट्रोल बम वगैरह शांति सामग्री मंगवाई जाती है । फिर इसे "शांतिप्रिय लोगों" में बांटा जाता है । फिर इनके धार्मिक गुरू "शांति की तकरीर" करते हैं जिससे ये लोग इतने "कूल" बन जाते हैं कि पत्थर, ईंट, तलवार, रिवाल्वर, पेट्रोल बम वगैरह हाथों में लेकर सडक पर "शांति का प्रदर्शन" करते हैं । सामने जो भी "काफिर" आता है उसे निशाना बनाकर "शांति सामग्री" से प्रहार करते हैं । इस "शांति प्रदर्शन" के कारण कुछ लोग मर जाते हैं और कुछ लोग घायल हो जाते हैं । कानपुर में भी ऐसा ही हुआ । वही दिन, वही धार्मिक स्थल, वही शांति पाठ, और वही शांति प्रदर्शन । सब कुछ वैसा का वैसा जैसा हर बार होता है ।
इस घटना से मैं यह सोचने पर विवश हो गया हूं सखि, कि यह मजहब कैसा है ? हमेशा "शांति" की ही भाषा बोलता है ? सप्ताह में एक विशेष दिन ये सभी "शांतिप्रिय" लोग एक धार्मिक स्थल में एकत्रित होते हैं और उसके बाद सड़कों पर , बाजारों में इनका "शांति प्रदर्शन" शुरू हो जाता है । मुझे यह समझ नहीं आया है सखि, कि इनका धर्मगुरू उस दिन इनको ऐसा क्या शांति का पाठ पढाता है जिससे यह शांतिप्रिय समुदाय पत्थर, तलवार, पेट्रोल बम लेकर सड़कों पर शांति मार्च निकालने लगता है । अब समय आ गया है सखि, कि इनके धार्मिक स्थलों की तलाशी ली जाये कि उसमें तलवार, बम, रिवाल्वर, पेट्रोल बम कहां से आये और इन्हें वहां पर कौन लाया ? शांति की प्रार्थना के समय "मौलवी" साहब ने ऐसी क्या तकरीर की जिससे सभी शांतिप्रिय लोग बाहर निकलकर "शांति जाप" करने लगते हैं ?
इनको लगा कि जिस तरह "टोंटी चोर" की सरकार में या "बानो" , "गिरगिट लाल" , "खानदानी दल की सरकार" या "नकली शेर" की सरकारों में इन्हें सिर माथे पर बैठाया जाता है , इनकी आरती उतारी जाती है और इन्हें दामादों की तरह "ट्रीट" किया जाता है , उसी तरह बुलडोजर बाबा भी उनकी आरती उतारेगा । पर ये भूल गए कि अब अकबर का जमाना तो है नहीं जो कोई कायर राजा किसी जोधाबाई का डोला भेजेगा । पर इन्होंने अपने आपको वैसा ही समझ रखा है और अभी भी वो "सुल्तान" वाली फीलिंग्स से बाहर नहीं आ पाये हैं । इसलिए गैर "शांतिप्रिय समुदायों" के खिलाफ ये अपना जहर उगलते ही रहते हैं । काश्मीर, बंगाल आदि इसके खास उदाहरण हैं ।
अब , इस घटना ने बुलडोजर बाबा का "तीसरा नेत्र" खोल दिया है । पता नहीं कौन कौन भस्म होगा उस ज्वाला में ? पर इतना तो तय है कि कुछ "अति शांतिप्रिय लोगों" को अकबर, औरंगजेब, गोरी, गजनवी, खिलजी जरूर याद आ जायेंगे ।
सखि, इंतजार है उस दिन का जब दंगा करने वालों का सीधा एनकाउंटर किया जायेगा । देखते हैं कि क्या ऐसा दिन भी आयेगा कभी ?
हरिशंकर गोयल "हरि"
4.6.22
Radhika
09-Mar-2023 12:49 PM
Nice
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Gunjan Kamal
06-Mar-2023 08:56 AM
Nice 👍🏼
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Kaushalya Rani
08-Jun-2022 05:31 PM
Nice
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